जिसका इतिहास उसकी संस्कृति में जीवित हो उसे इतिहास के पन्नों की जरूरत नहीं - बरखा जोहार छत्तीसगढ़ रांची। इतिहास में आदिवासी वीरागनाओं की वीरगाथा भरे पड़े है। इन वीरागनाओं की शौर्यगाथा को लिखने के लिए इतिहास के पत्रों की जरूरत नहीं है बल्कि इनका इतिहास आदिवासी संस्कृति में जीवंत हैं। और अनंतकाल तक जीवंत रहेगा। इतिहास समाप्त चीजों की होती है जीवंत चीजों की नहीं। रोहतासगढ़ पर फतेह हासिल नहीं में आदिवासी वीरगनाओं की जीवंत आदिवासियों का सबसे बड़ा हाथ में टांगी, बलूआ, वीरगाथाओं में से एक जनी शिकार त्योहार सरहुल होता हैं। इस त्योहार हँसूआ, बैंठी, का त्योहार हैं। जो बारह वर्षों में में वे साल, सखुआ, पेड़ और उसके तौर धनुष लेकर एक बार मनाया जाता है ये त्योहार फूल की करते हैं। जिसको तोड़ने राजा रूईदास की आदिवासी महिलाओं की वीरगाथा के लिए गांव के सारे पुरूष दई. कईलो दई, को दर्शाती है। जनी शिकार साहस नाचते-गाते हुए जंगल की ओर अगुवाई में दुश्मनों व वीरता का प्रतीक हैं। जनी जाते हैं। शिकार मनाने के पीछे एक और महिलाएं घर में रहकर दुशमनों को श्नाकों ऐतिहासिक मान्यता हैं। कहा जाता पकवान बनात...
News & amp; blogs