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पहांदीपरी कुपार लिंगो का बचपन (गोंडी पुनेम साथ)पहांदीपरी

पहांदीपरी कुपार लिंगो का बचपन कुपार लिंगो के बचपन के बारे में कोया पुनेमी कथासारों, पुनेमी गीतों तथा लोक गीतों में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। फिर भी ऐसा बताया गया कि वह बचपन से ही बहुत तीक्ष्ण बौध्दिक शक्ति का धनी था। किसी भी बात को उसे दो बार समझाने की जरुरत नहीं होती थी। उस वक्त के रीति रिवाजों के अनुसार उसकी पढ़ाई की व्यवस्था राजमहल में ही की गई। कोयला मोदी भुमका उसे पढ़ाया करता था। बहुत कम उम्र में ही सभी प्रकार का ज्ञान उसने ग्रहण कर लिया था। एक राजकुमार को जिस प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती हैं, वह उसे प्रदान किया गया। बाल्यावस्था से ही वह अपने पिताजी के कामकाज में हाथ बढ़ाया करता था। कोया पुनेम कथासारों के अनुसार पुलशीव का गण्डराज्य बहुत ही छोटा था। उसके इर्दगिर्द हर्वाकोट, मुर्वाकोट, सिर्वाकोट, आदि गण्डराज्य थे। उस परिक्षेत्र में युम्मा, गुनगा, सुलजा, घागरी, सिंद्राली, बिंदरा आदि नदियां प्रवाहित थी। वर्तमान में उनके नाम क्या हैं यह एक संशोधन का विषय है, और इस बिन्दू पर शोधपूर्ण अध्ययन गोंडवाना कोट दर्शन में लिपिबध्द किया जा चुका है। कोया वंशीय गोंडी गोंदोला के सगावेन गण्ड...

कुपार लिंगो का जन्म

कुपार लिंगो का जन्मम Handipari kuppar lingo koituro ka pratham guru #(पहांदीपारी कुपार लिंगों) पारी कुपार लिंगो के जन्म के बारे में कोया वंशीय गोंडी गोंदाला के सगावेन गण्डजीवों में अनेक तरह की किवदन्तियां प्रचलित है। उनमें से चंद्रपुर, अदिलाबाद, वारंगल, इस्टगोदावरी और बस्तर परिक्षेत्र में जो कथासार प्रचलित है उसके अनुसार गोंडी पुनेम मुठवा पहांदी पारी कुपार लिंगो का जन्म "कोया पुंगार" से हुआ है, ऐसी जानकारी मिलती है। ठीक ऐसा ही कथासार डॉ. हेमन्डॉर्क के “दी राजगोंडस् ऑफ अदिलाबाद" इस किताब में भी वर्णित है । मुह जबानी कथासारों के अनुसार, एक बार हीर्बा दाई को पेण्डूर गंगा में जलविहार करने की इच्छा हुई। पेण्डूर मेट्टा सें पेण्डूर गंगा का उद्गम होकर वह पुर्वाकोट गण्डराज्य से बहती थी, जिसके बहते पानी में जलविहार करने हीब माता अपने सेविकाओं के साथ गई। नदी किनारे एक पेड़ की छांव तले अपने वस्त्रादि उतारकर वह नदी के प्रवाह में जलविहार करने उतर गई। उसे नदी केेप्रवाह में हो गया। एक सुंदर "कोया पुंगार" बहता हुआ दृष्टिगोचर हुआ। उसे पकड़ने हेतु हीर्बा माता तैरते हुए बीच प्रवाह...