गोंड समुदाय में प्रचलित कथासारों के अनुसार पहादी पारी कुपार लिंगो का गोंडी पुनेम प्रचार कितना और कहां तक हो चुका था इसका प्रमाण मिलता है। पारी कुपार लिंगो के अनुयायियों की संख्या सर्व प्रथम मण्डुन्द कोट (नीस) थी जिस भूभाग पर उसके अनुयायियों ने गोंडी पुनेम का प्रचार किया था उसे कोयमूरी द्वीप कहा जाता था। कोयमूरी दीप के कुल चार संभाग थे (१) उम्मोगुट्टा कोर (२) अफोकागुट्टा कोर, (३) सईमालगुट्टा कोर और (४) येरूगुट्टा कोर गोंडी पुनेमी मूठ लिंगो मंत्रों से उक्त कोयमूरी दीप के चार संभागों में पुर्वाकोट, मुर्वाकोट, हर्वाकोट, अमूरकोट, सिर्वाकोट, वर्वाकोट, नवकोट, सर्वाकोट, येरगुडाकोट, पेंडूरकोट, पतालकोट, चीतेरकोट, आदिलकोट, लंकाकोट, सुडामकोट, परंदूलकोट, कीरंदूलकोट, साबूरकोट, सियालकोट, सुमेरकोट, उमेरकोट, सिनारकोट, मीनारकोट आदिगण्डराज्य और नरालमादाल, जवाराल, महादाल, सोनगोदाल, मयान, पेनगोदा, वेनगोदा, पेन्कटोडा, गोंदारी, खोबरी, संभूर, मागोडगूरी भारेट, टागरी, उटगरी, पनीर, पेनाल आदि नदियां, उम्मोली सिंथाली, बिंदरा, कजोली, रोमरोमा, भिमागढ़, आऊटबंटा, निलकोंडा, सयमंडी, सिवाडी, पुल्ली मेट्टा, पेडूममेट्टा, ब...
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