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पारी कुपार मुठवापोय लिंगो का बचपन

अध्याय २ रा

पारी कुपार मुठवापोय लिंगो का बचपन

“कुपार लिंगो मुठवानी पुलशीव हिर्बानोर मर्री। कोया मानवान सीतोनी सगा पुनेमता चोकसरी ॥ तादो नीवोर पुर्राशी पुर्वाकोट आंदु नीवा नार। पुरार भिड़ी नीवाये हद उम्मोगुट्टा कोर गुडार ।। "

लिंगो मुठवा सुमरी मन्तेर (४)

अर्थ – हे कुपार लिंगो गुरूबाबा ! तुम पुलशीव- हीर्बा माता के पुत्र हो । कोया वंशीय गण्डजीवों को तुमने सगा पुनेम का मार्ग प्रदान किया है। तुम्हारे दादाजी का नाम पुर्राशी है जो पुर्वाकोट गण्डराज्य के गण्डप्रमुख है और तुम्हारा वंश उम्मोगुट्टा कोर संभाग में स्थित पुर्वाकोट का पुरार भिड़ी है।

कोयामूरी दीपता सिरडी सिंगार।

पेण्डूर मट्टाता परसापेन गुडार ।।

पोंगसी वासी मत्ता कोया पुंगार।

मुठवा पुटसी वातोर पहांदी कुपार ।।

कोया पुनेमी नालटुका (५)

अर्थ – कोयामूरी दीप के सीरडी सिंगार में पेण्डूर पर्वत से बहनेवाली परसापेन गंगा में एक कोया पुंगार बहता हुआ आया, जिसके कारण हे पहांदी कुपार लिंगो तुम्हारा जन्म हुआ।

रे–रेना- रेना-रेना-ए, रे–रेना- रेना-रेना-ए। पुर्वाकोट पोसतोर पोयाले, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए। पुराशी कोकू आसी हत्तोरे, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए || ओर पुर्वाशी कोकुनोर पुंगारे, कैजा नावोर दाऊ कैजा ए। होर्याल पुलशीव आसी हत्तोरे, केंजा नावोर दाऊ कैजा ए|| पुलशीव हीर्बानोर पुंगारे, कैजा नावोर दाऊ कैजा ए। कुपार लिंगो आसी हत्तोरे, कैजा नावोर दाऊ कैजा ए || लिंगो मुठवा मुयंडे माताए, कॅजा नावोर दाऊ कॅजा ए। फड़ा सगा पोयसी वाताए, केंजा नावोर दाऊ कैजा ए। रायतार जंगो मुयंडे माताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए। चुडूर सगा पोयसी वाताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए। सल्लां गांगरा मुखंडे माताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए। कोया पेन पोयसी वाताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए || सुर्वेय छवूर मुखंडे माताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए। परसापेन सुक्ति मुन्वाताए, केंजा नावोर दाऊ केंजा ए।

पुरार रेला पाटा (६) अर्थ – हे मेरे दाऊ सुनिए! पुर्वाकोट गण्डराज्य के गणप्रमुख पुर्राशी कोकु को पुलशीव और होर्याल ऐसे दो पुत्र थे, जिनमें से पुलशीव और हीर्बा माता के पुत्र पहांदी पारी कुपार लिंगो था। कुपार लिंगो और रायतार जंगोने मिलकर कोया वंशीय गण्डजीवों की सगावेन युक्त सामुदायिक संरचना संरचित किए। कुपार लिंगो के नाम से चार सगावेन घटक, रायतार जंगो के नाम से तीन सगावेन घटक और परसापेन शक्ति के नाम से पांच सगावेन घटक संरचित किए गए। सल्लां गांगरा यह दो ऊना-पूना परस्पर विरोधी परंतु एक दूसरे के पूरक दाऊ-दाई शक्ति से ही जीव जगत का प्रादूर्भाव होता है, इसलिये परसापेन शक्ति की प्रतिस्थापना सुर्वय पालो, पुंगार, छवूर, बाना के साथ पेनकड़ा या सरनास्थल में की गई है। उक्त जो रेला गीत है, उसे लाटी पाटा भी कहा जाता है। कुपार लिंगो के ढाल को मंढ़ई के स्थलों में भेट हेतु ले जाते वक्त सभी स्त्रियां इस गीत को गाते हुए ढोलक नंगाड़ा के ताल पर नृत्य करती हैं। यह गीत विशेष रूप से सीवनी, बालाघाट, छिंदवाडा और नागपुर परिक्षेत्र के कोया वंशीय गोंड समुदाय में प्रचलित है, जिसे गोंडी नृत्याचा पुर्वोतिहास में संकलित किया गया है। रेना-रेरेना-रे- रेना

रेना-रेरेना-रे-रेना लिंगो - रेना-रेरेना-रेरेना । कुपार मुठवा नीवा तल्लाडे

सीग मोहूर साजे मातारो लिंगो सीग मोहूर साजे माता।

पुर्वाकोट पोयतोर राजमर्री इमा

पुलशीव राजानोर पुंगारे लिंगो सीग मोहूर साजे माता ।

पुर्बाना जोत नीवा कप्पार ते

जुगमांजो मांजी लाता रो लिंगो सीग मोहूर साजे माता।

पुटसी वातोनी कोराते इमा हीरबा दाईनोर सिंगारे लिंगो सीग मोहूर साजे माता ।

रूपोलंग निवा परोल ते

सोनरूप झलारे माता रो लिंगो - सीग मोहूर साजे माता ।

गोंडी पुनेमता सारलाई इमा

सुनमुन दीप सर कीती रो लिंगो रायतार जंगोना ठानाते इमा • सीग मोहूर साजे माता ।

नीलकोंडा हंजीतोनी रो लिंगो सीग मोहूर साजे माता । पेनगंगा उसाते पोंगसी इमा

मुरूंगसी मत्तोनी भोवराते लिंगो

पहांदी पुंगार अर्सी भोवराते

- सीग मोहूर साजे माता ।

जीवादाने नीकुन सीतारो लिंगो सीग मोहूर साजे माता ।

संभूना गोंदारी लेंग पुंजी इमा

गोंडवानी बने कीती रो लिंगो सीग मोहूर साजे माता ।

सावरी मड़ाना धड़मीते नीकुन

गोंडी पुनेम सार पुटतू रो लिंगो - सीग मोहूर साजे माता ।

कोयली कचारता कोपताल इमा

कंकाली पेन्कुन तंडती रो लिंगो

येर किसी वेन गोंदाते इमा

सीग मोहूर साजे माता ।
सगापेन सवारे कीती रो लिंगो पारंड सगाना कीती बिड़ारे साड़े येरूंग नुरू पाड़ींग रो लिंगो पेनकड़ा बने किसी लांजी डुम्माते सीग मोहूर साजे माता । सीग मोहूर साजे माता ।

कड़ापेन पूंजा कीती रो लिंगो सीग मोहूर साजे माता ।

गोंडी पुनेम सार बेहताले इमा नार नाटे गोटुल दोहती रो लिंगो सीग मोहूर साजे माता। काची कोपाड़ नीचा ठानाते

सगा बिड़ार सेवा कीता रो लिंगो, सीग मोहूर साजे माता । (७) अर्थ – हे लिंगो तुम्हारे सिर पर सल्लां-गांगरा शक्ति के साथ वैगुण्य शूल का प्रतिक सीग मोहूर सुशोभित है। तुम पुर्वाकोट गण्डराज्य के राजकुमार एवं पुलशीव राजा के पुत्र हो। सूर्य का तेज तुम्हारे मस्तक पर प्रकाशमान है। हीब दाई की कोक से तुम्हारा जन्म हुआ है। तुम्हारा नाम रूपोलंग है, जिसमें सुवर्ण और चांदी की झलक है। गोंडी पुनेम का सत्मार्ग के साक्षात्कार हेतु तुमने सुनमुन दीप का परिभ्रमण किया है। रायतार जंगो के साथ नीलकोंडा पर्वतीय मालाओं में स्थित कोटापरंदुली में जाकर उस संभाग के कोया वंशीय गण्डजीवों के जीवन प्रणाली का तुमने अध्ययन किया। परिभ्रमण करते समय पेनगोदा के बाढ़ में बह गए थे, किन्तु पहांदी फूल के कारण तुम नदी के भावर में डूबने से बच गए और तुम्हें जीवनदान प्राप्त हुआ। संभू- – गवरा की गोन्दाड़ी के सूरों को समझकर तुमने गोंडवानी की रचना की है। सेमल वृक्ष के नीचे तुम्हें कोया वंशीय गण्डजीवों के जीवनप्रणाली का साक्षात्कार हुआ। कोयली कचाड़ कोप से तुमने कली कंकाली के बच्चों को मुक्ति दिलाई है। गोंडी पुनेमी मूल्यों की शिक्षा एवं दीक्षा प्रदान कर वेनगोदा नदी के प्रवाह में उन्हें शपथ दिलाई है। बारह सगावेन युक्त सामुदायिक संरचना प्रस्थापित कर सातसौ पचास कुल गोत्रों में संपूर्ण कोया वंशीय गण्डजीवों को विभाजित किया है। कोया वंशियों की जन्म दायिनी सल्लां गांगरा फरावेन (ज्येष्ठ दाऊ दाई) शक्ति की स्थापना कर गोंडी पुनेम सार बताने हेतु तुमने हर गांव में केंद्र स्थापित की। कोया वंशीय गोंड समुदाय आज भी तुम्हारी सेवा काची कोपाड़ पुनेम स्थल में करता है। 
रेना-रेरेना रेरेना रेना,

रेना-रेरेना रेना ऽऽ ।।

पुलशीव हीर्बानोर मरी आंदी इमा,

ये मावोर मुठवा लिंगोनी । कोया बिडारतोर पुंगार आंदी इमा

ये मावोर गुठवा लिंगोनी । पुर्वाकोट पोयतोर शूर आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी । सूनमून दीप सर किये आदी इमा

ये मावोर गुठवा लिंगोनी । पेनगंगा उसाते पोंगे आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी । पहांदी पुंगार अर्सी पिस्से आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी । गोएन्दाड़ी लेंगतून पुन्ने आदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

गोंडवानी लबजांग दोहे आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी । सावरी मड़ा नेली सूर मिर्के आंदी इमा ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

जंगवेन दाईनोर तम्मु आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

कोयली कचाड़ ते हन्ने आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

कोपताल कोया पेन तण्डे आदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

पारंड सगापेन तुसे आंदी इमा

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

येरूंनुरसयूं पाड़ी सीए आंदी इमा
ये मावोर मुठवा लिंगोनी । नारनाटे गोंगोटूल दोहे आंदी इमा ये मावोर मुठवा लिंगोनी । सजोरपेनता पूंजा कीए आंदी इमा ये मावोर मुठवा लिंगोनी। गोंडी पुनेम सार सीए आदी इमा मुंदशूल सेवा सर्री वेहे आंदी इमा ये मावोर मुठवा लिंगोनी। (८)

ये मावोर मुठवा लिंगोनी ।

अर्थ- पुलशीव हीर्बा का तू पूत्र है, हे हमारे लिंगो कोया वंशीय गण्डजीवों तू का फूल है। तू पुर्वाकोट का राजा है, गोंडी पुनेम सार हेतु तूने सुनमून दीप का अरिभ्रमण किया है। पेनगंगा के बाढ़ में तू बह गया था, परंतु पहांदी फूल के कारण तुझे जीवदान मिला। गोएन्दाड़ी के सूरों को जानकर गोंडवानी के शब्दों की तूने रचना की है। काट सावरी वृक्ष के नीचे तुझे सत्यज्ञान का साक्षात्कार हुआ। तू जंगो रायतार दाई का भाई है, और कोयली कवाड़ में जाकर तूने कंकाली बच्चों को मुक्त किया है। बारह सगापेन घटक में कोया वंशीय गण्डजीवों को तूने संरचित किया है और सात सौ पचास सगा गोत्रों में उनका विभाजन किया है। हर गांव में पुनेम प्रचार हेतु तूने गोंगोटुल ज्ञानकेंद्र की स्थापना की है। गोंडी पुनेम का सार बताकर तुने सर्वकल्याणवादी त्रिशूल मार्ग की प्रतिपादन किया है।

रेना रेना रे रेना रेना 55 रेना रेना रे रेना रेना 551

रेना रेना रे रेना रेना 55 रेना रे रेना 5ऽ।

गोंडी लेंग सूर बोना आंदू, गोंडी लेंगसूर बोना आंदू, गोंडी लेंग सूर नीवा आंदू, जो हार लिंगो, सेवा सेवा लिंगो । गोंडी पाटांग बोना आंदू, गोंडी पाटांग बोना आंदू, गोंडी पाटांग नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो । गोंडी बाजांग बोना आंदू, गोंडी बाजांग बोना आंदू, गोंडी बाजांग नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो । गोंडी डाकांग बोना आंदू, गोंडी डाकांग बोना आंदू,
गोंडी डाकांग नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो । गोंडी सगांम बोना आंदू, गोंडी सगांम बोना आंदू,

गोंडी सगांम नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो । गोंडी गोंदोला बोना आंदू, गोंडी गोंदोला बोना आंदू,

गोंडी गोंदोला नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो। गोंडी राजनेंग बोना आंदू, गोंडी राजनेंग बोना आंदू,

गोंडी राजनेंग नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो ।

गोंडी पेनसूर बोना आंदू, गोंडी पेनसूर बोना आंदू, गोंडी पेनसूर नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो ।

गोंडी लमचार बोना आंदू, गोंडी लमचार बोना आंदू,

गोंडी लमचार नीवा आंदू, जो हार लिंगो सेवा सेवा लिंगो। (९) गोंडी भाषा के स्वर व्यंजनों का रचनाकार कौन है, गोंडी गीतों का सार अर्थ बतानेवाला कौन है, संगीत वाद्य यंत्रो एवं संगीत के ज्ञाता कौन है, गोंडी नृत्य के पदन्यासों का नर्तक कौन है, गोंडी सगावेन गण्डजीवों की रचना किसने की है, गोंडी समुदाय (गोंदोला) का संरचनाकार कौन है, गोंडी राजतंत्र की राजनिती बतानेवाला कौन है, गोंडी पुनेम का जीवन मार्ग बतानेवाला कौन है, गोंडी साहीत्य ज्योति को प्रज्वलित करनेवाला कौन है, तो हे लिंगो, तू ही है, तुझे हम नमन करते है तेरा जय जय कार करते हैं।

रेना रेरेना- रेरेना 55

रेना रेना-रेरेना रेना

रेना – रेरेना-रेरेना

इमा नावोर जीवा आंदी रों

आंदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी ।। १ ।।

बैंड इमा बेगा हत्ती मांदी रों,

मांदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी ।। २ ।। सजोरपेन पूजा इमा कींदी रो, कींदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो
इमा नावोर जीवा आंदी ॥ ३॥ गोंडीपुनेम सूर इमा सींदी रो, सींदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी॥ ४ ॥ गोंडी राजनेंग इमा वेहंदी रो, वेहंदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी ।। ५।। सूर बीसी पाटा इमा वारंदी रो, वारंदी से, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी ।। ६ ।। ढोलकी नंगारा नेकसींदी रो, नेकसींदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आंदी ।। ७ ।। सरासरा उलूड इमा उहकंदी रो, उहकंदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आंदी ॥ ८॥ सल्लेर जोका इमा जींदी रो, जींदी रो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आदी ।। ९ ।। नेलखूरी बिदिया इमा करींदी रो, करींदी रो, नावा हिरतारे लिंगो इमा नावोर जीवा आंदी ।। १० ।। हंजीकुन फिर वायका इंदीरो, इंदीरो, नावा हिरदातोर लिंगो इमा नावोर जीवा आंदी ॥ ११ ॥ (१०)

अर्थ - तुम हमारा जिवन हो, हे हमारे जीगर के लिंगो तुम हमारे जीवन हो । परसापेन शक्ती की तुमं पूजा किया करते थे, गोंडी पुनेम का सार तुम दिया करते थे, गोंडी राजतंत्र बताया करते थे, गोंडी गीत गाया करते थे, ढोलक नगाड़ा बजाया करते थे, बासुरी बजाकर हमारे जीवन को मोह लिया करते थे, झूम झूम कर नृत्य किया करते थे, खेती बाड़ी करने की विद्या सिखाया करते थे। हे, हमारे

जीगर के लिंगो तुम जाकर फिर लौट आने का वचन दे चुके हो, आज कहा

जाकर बस गये हो।

इस तरह कोया वंशीय गोंडी गोन्दोला के सगावेन गण्डजीवों में मुंह जबानी रूप से प्रचलीत धार्मिक किवदन्तियों तथा कथासारों के अनुसार और उक्त लिंगो सुमरी मन्तेर गोंडी पुनमी नालटुका तथा पारम्पारीक नृत्य गितो के अनुसार गोंडी पुनेम गुठवा पहांदी पारी कुपार लिंगो का जन्म प्राचीन काल में कोयमूरी द्विप के उम्मोगुट्टा कोर संभाग में जो पुर्वाकोट गणराज्य था, वहां पर हुआ। पारी कुपार लिंगो के पालनहार पिता का नाम पुलशिव और माता का नाम हिर्बा था। पुलशिव पुर्वाकुट गणराज्य का गण्डप्रमुख था। उस वक्त कोयमूरी दिप (कोयमुरी दिप याने कोया वंशीय पुत्रों का दिप) में उम्मोगुट्टा कोर, येरगुट्टा कोर, सयमाल गुट्टा कोर और अफोका गुट्टाकोर, ऐसे चार संभाग थे। उन चारों संभागों में पुर्वाभीड़ी नलेजभिड़ी, पुरार भीड़ी और भुजंगभीड़ी इन चार वंशों के कोया वंशीय गण्डजीवों की अधिसत्ता थी। (११)

उन सभी कोया वंशीय गण्डजीवों के कोयमुरी दिप का राजा संभूशेक था, जिसकी अर्धांगिनी गवरा थी और धरती के राजा की वह जोड़ी संभू - गवरा के नाम से विख्यात थी। उम्मोगुट्टा कोर संभाग में उस वक्त पुर्वा कोट, हर्वाकोट, मुर्वाकोट, सिर्वाकोट आदि छोटे छोटे गण्डराज्य थे। आज वे सभी स्थल कहां पर हैं और किस नाम से जाने जाते हैं, यह भलेही संशोधन का विषय है, फिर भी मोटे तौर पर उनका अनुमान लगाया जा सकता है, उम्मोगुट्टा कोर याने वर्तमान भारत का उत्तरी भाग और उसी परिक्षेत्र में पहांदी पारी कुपार लिंगों के पिता पुलशीव का पुर्वाकोट होना चाहिए। पहादी पारी कुपार लिंगोने कोयमूरी दीप के सभी गण्डजीवों को एक "कोयलीबेड़ा" (कोया वंशीयों का बिहार) में संगठित कर संरचित किया था, इसलिए उसके गण्डराज्य को कोयली बेड़ा कोट भी कहा जाता था।

कोयली बेड़ा कोट तोर पोयारे घागरी ते डुबकी जिन्दूरे ओर पुलशीव राजानोर मरीं।

पुर्वाकोट कोट पोय तोर पोयारे, घागरीते डुबकी जिन्दूरे ओर पुलशीव राजानोर मरी उक्त गोंडी पाटा से इस बात की जानकारी मीलती है कि कोयली बेड़ा कोट का राजकुमार घागरी नदी के डोह में नहाया करता था, जो पुलशीव राजा का पुत्र था पुर्वाकोट का राजकुमार घागरी नदी के डोहमें नहाया करता था जो पुलशीव राजा का पुत्र था इसतरह कोयली बेड़ा कोट और पूर्वा कोट घागरी नदी किनारे स्थित थे, यह पता चलता है। पुरातत्व विदों को घग्गर नदी किनारे जो प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो मोहन जोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यता से प्राचीन है, जिसे कोयली बंगा सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इस पर से वर्तमान काली बंगा सभ्यता ही प्राचीन कोयली बेड़ा सभ्यता थी। (१२) मग्गर घाटियों में स्थित सियार कोट, शाबूर कोट, धारीकोट, सालेरकोट, बांसाकोट, खण्डकोट, भरुडकोट, डंगूरकोट, आदि सभी गोंडी मूल के ही नाम है, जहां प्राचीन काल में संभू-गवरा के पिण्ड की उपासना करनेवाले गण्डजीवों की सभ्यता थी। इन स्थलों में पुरार भईल, मीन गोत्र चिन्हधारी कोया वंशीय गोंडी गोंदोला के गण्डजीवों की सभ्यता थी। आज वे मीना, भील, पुरहार नाम से जाने जाते हैं, जो गोंडी मूल के प्राणियों के नाम हैं। अमूर कोट से उद्गमित नरमादा नदी किनारे उनका वेल विस्तार पेन्कमेड़ी कोट, मीन कोट, भईल कोट, मुर्वाकोट, हर्वाकोट, कोन्दारकोट, मागोडमूरी कोट और सुमेर कोट तक हो चुका था। घागरी नदी किनारे करीब आठ सौ स्थलों में जो प्राचीन अवशेष पाए गए हैं, वे सभी कोया वंशीय गोंडीवेन गण्डजीवों के ही प्राचीन गण्डराज्य थे, जिस परिक्षत्र के पुरवाकोट के गण्डप्रमुख पुलशीव पुत्र पहादी पारी कुपार लिंगो था। (१३)

उक्त पुरार रेला पाटा के अनुसार पुराशी कोकु पुत्र पुलशीव पुर्वाकोट का गणप्रमुख था। पुलशीव का विवाह येरगुट्टा कोर संभाग के नर्वाकोट नागडुवार) गण्डराज्य के गण्डप्रमुख ढोला पुयार की कन्या हीर्बा दाई के साथ हुआ था। पांच वर्ष का संसारिक जीवन बीत जाने के बावजूद भी पुलशीव राजा को पुत्र रत्न का लाभ नहीं होने की वजह से वह बहुत ही चिन्ताग्रस्त एवं दुःखी था। अंत में परसापेन की कृपा से उसे एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ, जो आगे चलकर गोंडी पुनेम का संस्थापक बना। इस बात की पुष्टि निम्न "नागडुवारे" गीत से होती है।

रे-रेना रेना-रेरेना ss, रे-रेना-रेना-रेरेनाSS

नवकोट पोयता हिवले नांग हुवारे दाऊ नांगडुवारे ।

ढोला पुयारता गियारे, नांग छुवारे दाऊ नांग हुवारे ॥
पुराशी कोकुना कुटमारते, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे। बनेमासी हंजी कोड्यारे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे । संयुग साबरीना बेरोते, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे सइलांगरा ता कयसारे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे ।। पुलशी होर्बाना कोड़ाते, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे पुटसी वातुर कुपारे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे ।। रुपोलांग होना पोलते, नांग डुवारे दाऊ नांग डुबारे । सोनरुप झलारे मातारे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे ।। सुयमोद सरी ओर सीतूरे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे । कोयावंशी गोंडी बिडारे, नांग डुवारे दाऊ नांग डुवारे ।। (१४)

उक्त नांगडुवार गीत में नर्वाकोट के ढोलापुयार की कन्या हिर्बादाई, पुर्वाकोट गण्डराज्य के गण्ड प्रमुख परांशी कोकु की कुलवधू बनकर जाती है, सल्ला गांगरा परसापेन शक्ति के आशीर्वाद से पुलशीव और हीर्बादाई के गोद में कुपार नामक पुत्र रत्न जन्म लेता है, जिसका नाम रूपोलंग होता है। उसके ललाट से सूर्य की तेज झलकती है, कोय वंशीय गोंडी बिडार को सत्यज्ञान का मार्ग बताया है, ऐसी जानकारी है।

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