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रानी दुर्गावती ना पिसवार (रानी दुर्गावती जीवनी )

रानी दुर्गावती ना पिसवार (रानी दुर्गावती जीवनी )






*गोंडवाना शासनकाल की वीरांगना महारानी दुर्गावती जी का संपूर्ण जीवन परिचय पहली बार संजू वाडीवा के द्वारा गोंडी भाषा में आप भी पढ़ें और जानें* 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 *रानी दुर्गावती ना पिसवार (रानी दुर्गावती जीवनी ) Biography of Rani Durgavati*
 
   *रानी दुर्गावती ता जनेआयना संयुंग येरोमान पसयूं नूर रन्नालू(5 अक्टूबर सन 1524 )ते महोबा ते आसी मत्ता. दुर्गावती ना बाबो महोबा तोर राजाल मत्तोर. रानी दुर्गावती बने, ऐंनकिये बेससॉभाव, सबैते एवं हिम्मतवारे टूड़ी मत्ता. महारानी दुर्गावती कालिंजर तोर राजाल कीर्तिसिंह चंदेल ना उंठले संतान मत्ता। बांदा जिला ता कालिंजर किला ते पसयूं नूर रन्नालू (1524 ईसवी) ता दुर्गाष्टमी ते जनेआयना ता लयताल अदुना पुरोल दुर्गावती र इर्रतुर। बाहुन पुरोल आहुने तेज, हिम्मतवारे, शौर्य अनी बनेदिस्सीना ता लयताल लइदुना जाहराआयना चंफेर फैलेआसित। दुर्गावती ता मायको अनी सोसरार पटी ता जात दीगर मत्ता अखर फेर बी दुर्गावती ता जाहराआयना ताल खिंचेआसी गोण्डवाना राज्य तोर राजाल संग्राम शाह मडावी नुर अपुना मर्री दलपत शाह मडावी ना मरमी कीसीेके, ओन अपोना कोरियार बने कीसू मत्तोर।* किस्मतखराब आतेके मरमी ना नालूंग सावरी बाततेई राजा दलपतशाह ना सायना आसित। अद बेरा दुर्गावती ना कोरा ते मूंद सावरीतोर नारायणय मत्तोर। इवटालेस रानी खुदई गढ़मंडला ता शासन सम्हरे कीसेलेत। अद अकूत मठ, कुएं, बावड़ी अनी पुनेमरोन बनेकीसाहती मत्ता। इंदेके ता जबलपुर अदुनई राज्य ता गढ़ मत्ता। अद तनवा दासी ना पुरोल पर्रो चेरीताल, अपुना परोल पर्रो रानीताल अनी अपुना बिसवासवारे दीवान आधारसिंह ना परोल पर्रो आधारताल बनेकीसाहची मत्ता। रानी दुर्गावती ना इद फव्व अनी सम्पन्न राज्य ते मालवा तोर मुसलमान शासनकिये बाजबहादुर लोर वलाबेर हमला कीतोर, अखर अच्चोरबेर ओर हारेआतोर। सबैते फड़ोर मुगल शासक अकबर बी राज्य तुन जीतेआसी रानीन अपुना सपड़ ते इर्रीना चाहेआंदोर। ओर बातातूनी सुधुन कियाले रानी ना ऐंन लागीवारे पंडरी हांथी (सरमन) अनी अदुना बिसवास वारे वजीर आधारसिंह तुन बेवहार ता रूप ते अपुना जोर्हे रोहतानाय कत्तोर। रानी इद मांगतुन ठुकरेकीसित। मरमी ता उंदी सावरी ता बात ते दुर्गावती ना उंदी मर्री आतोर. ओना पुरोल वीर नारायण दसतुर. बद बेरा वीरनारायण मूंदई सावरी तोर मत्तोर ओना बाबो दलपति शाह ना सायना आसित. दुर्गावती ना पर्रो तो ईहुनकि दुक्खना पहाड़ई उरूंगसित. अखर अद फड़ा धीरज अनी हिम्मत ता संगदे इद दुःखतुन सहेआतु. दलपति शाह ना सायना ता बात ते अदुना मर्री वीर नारायण गद्दी ते उचतोर. रानी दुर्गावती औना बचेकियानवापे बनेआत अनी राज – काज खुदई हूरीलात. अद बरहमेश जनता ता दुःख – सुख ता ध्यान इरंदू. चतुर अनी बुद्धिमान मंत्री आधार सिंह ना सलाह अनी सहांव ताल रानी दुर्गावती ने अपुना राज्य ता मेढ़ो बढ़ेकीसेलेत. राज्य ता संग – संग अद ऐनदिस्से परमूगज सेना बी बनेकीसेलेत अनी अपुना बहादुरी, उदारता, हुशियारी ताल राजनैतिक उंदीआयना बनेकीसी मत्ता. गोंडवाना राज्य शक्तिशाली अनी संपन्न राज्यक ते लक्सीना हंदा लात. इदुनताल दुर्गावती ना परोल जाहरा बगरेआसित. रानी दुर्गावती ना योग्यता अनी बहादुरीता बड़ाय अकबर केंजतोर. ओना दरबारतोर ओन गोंडवाना तुन अपुना कब्जा कियाना सलाह सीतुर. जीवाताल अकबर ईहुने कियाना बेस समझे आतोर, अखर अधिकार्क ना बेर– बेर सलाह सियाना पर्रो अकबर राजू आसीतोर. ओर आसफ खां परोलतोर सरदार तुन गोंडवाना ता गढ़मंडला ते चढ़ाई कियाना सलाह सीतोर. रानी दुर्गावती उंदी वीरांगना ता रूप ते :  रानी दुर्गावती अपुना वरूकई तराहताना ते भारत वर्ष ते अपुना परोल जाहरा कीसे लेसी मत्ता| शेरशाह ना सायना ता बात सुरत खान ओना सियानी सम्हारे कीसी ऐर अद बेरा मालवा गणराज्य ते शासन कींदोर | सुरत खान ता बाद ओना मर्री बाजबहादुर सियानीतुन अपुना कयदे ऐचतोर अद रानी रूपमती ताल माया ता लाय जाहरा आतोर | गद्दी ते उचतेकेई बाजबहादुर तुन उंदी पेकी शासक तुन हरेकियाना वला सरल लागंदू इवटालेस ओर रानी दुर्गावती ना गोंड साम्राज्य पर्रो धावा बोलेकीसेतोर | बाज बहादुर ना रानी दुर्गावती तुन कमजोर समझेआयना ता चुक्का ता लायताल ओन वल्ले हार ता सामना कियापड़ेआत अनी ओना वला सैनिक घायल आसीतुर| बाजबहादुर ना खिलाफ इद लड़ाय ते नीरीना ता लाय ताल अगल बगल्क ना राज्य्कने रानी दुर्गावती ना डंका बजेआसीसी मत्ता | इंदेके रानी दुर्गावती ना राज्य तुन ऐतीना सबरो कोही कामना कींदुर मत्तुर ओर्कना ताल उंगी मुगल सूबेदार अब्दुल माजिद खान बी मत्तोर| ख्वाजा अब्दुल मजिद आसफ खान कारा मणिकपुर तोर शासक मत्तोर ऐर रानी ना जोर्हेता साम्राज्य मत्ता | अद बेरा ओर रानी ना खजाने ता बारे ते केंजतोर ते ओर आक्रमण कियाना ता बिचार बनेकीतोर | अकबर अनी दुर्गावती :         पर्रो कताना आहुने महान् मुग़ल शासक अकबर बी राज्य तुन जीतेआसी रानी तुन अपुना सपड़ ते इर्रीना चाहेआंदोर। ओर तरहताना सुधुन कियाले रानी ना ऐनलागीनवारे पंडरी हांथी (सरमन)अनी अदुना बिसवासतोर वजीर आधारसिंह तुन बेवहार ता रूप ते अपुना जोर्हे रोहतानाय कत्तोर। रानी इद मांगतुन ठुकरे कीसित। इदुन पर्रो अकबर अपुना उंदी रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ ना सियानी ते गोंडवाना पर्रो हमला कीसीतोर । उंदी बेर तो आसफ़ ख़ाँ हारेआतोर, अखर रैक बेर ओर रंडगुना सेना अनी तैयारी ता संगदे हमला कीतोर। दुर्गावती ना जोर्हे अद बेरा जराना सैनिक मत्तुर।ओर्क जबलपुर ता जोर्हे 'नरई नाले' ता जोर्हे मोर्चा लागसाहतुर अनी खुदई पेकोर भेष ते तरहताना ता सियानी कीसी।   

      इद तराहताना तेे मूंद सुसंगर(3,000) मुग़ल सैनिक सासीमत्तुर अखर रानी ना बी वल्ले नुकसान आसी मत्ता। रैक नेटी रन्नालू कोंदोमान पसयूं नूर सार्नालू (24 जून, 1564 )ते मुग़ल सेना फेरताल हमला कीतोर | नेड़ रानी ना पटी हीनोदूबरो मत्तुर, इवटालेस रानी अपुना मर्री नारायण तुन बचेआयना जघा ते रोहचित । अदे बेरा उंदी तीर अदुना बक्खा ते लाग्त , रानी अदुन टंडसी फेंकेकीसित। रैक तीर अदुना कन ते लाग्त, रानी इदुन बी टंडसेलेत अखर अदुना नोंक कनदेने मंछित । अदे बेरा मूंक तीर अदुना घोंघा/गरो ते वासीके गोडसित।          रानी आखरी बेरा जोर्हे पुंजीके वजीर आधारसिंह ताल बिनंती कीत कि ओर अपुना तलवार ताल अदुना गरो/घोंघा तुन अस्कीसिये, अखर ओर इदुना नाय राजू हिल आतोर । इवटालेस रानी तनवा कटार ताल तनई अपुना छाती ते भोंकेकीसी के खदई बलिदान/शहादत ता सर्री ते वासीसीत। महारानी दुर्गावती अकबर्क ना सेनापति आसफ़ खान ताल तराहची के अपुना जीवा सियाना ता वरूक ताल पसयूं सावरीक (पंद्रह वर्षों )लौ शासन कीसी मत्ता। *उपरोक्त लेख गोंडवाना शासनकाल की वीरांगना महारानी दुर्गावती जी का जीवन परिचय गोंडी भाषा में पहली बार संजू वाडीवा के द्वारा लिखा जा रहा है गोंडी शब्दों में कोई गलतियां हों तो क्षमा करें और सही क्या है मुझे जरूर बताएं उपरोक्त गोंडी भाषा लेख का हिंदी रूपांतरण नीचे दिया गया है आप पढ़ ले और अगर आपके घर में कोई बुजुर्ग गोंडी भाषा बोलते हैं तो उन्हें पढ़कर जरूर सुनाएं |* (रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। विवाह के एक वर्ष पश्चात् दुर्गावती का एक पुत्र हुआ. जिसका नाम वीर नारायण रखा गया. जिस समय वीरनारायण केवल तीन वर्ष का था उसके पिता दलपति शाह की मृत्यु हो गई. दुर्गावती के ऊपर तो मानो दुखो का पहाड़ ही टूट पड़ा. परन्तु उसने बड़े धैर्य और साहस के साथ इस दुःख को सहन किया. दलपति शाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र वीर नारायण गद्दी पर बैठा. रानी दुर्गावती उसकी संरक्षिका बनी और राज – काज स्वयं देखने लगी. वे सदैव प्रजा के दुःख – सुख का ध्यान रखती थी. चतुर और बुद्धिमान मंत्री आधार सिंह की सलाह और सहायता से रानी दुर्गावती ने अपने राज्य की सीमा बढ़ा ली. राज्य के साथ – साथ उसने सुसज्जित स्थायी सेना भी बनाई और अपनी वीरता, उदारता, चतुराई से राजनैतिक एकता स्थापित की. गोंडवाना राज्य शक्तिशाली और संपन्न राज्यों में गिना जाने लगा. इससे दुर्गावती की ख्याति फ़ैल गई. रानी दुर्गावती की योग्यता एवं वीरता की प्रशंसा अकबर ने सुनी. उसके दरबारियों ने उसे गोंडवाना को अपने अधीन कर लेने की सलाह दी. उदार ह्रदय अकबर ने ऐसा करना उचित नहीं समझा, परन्तु अधिकारियो के बार – बार परामर्श देने पर अकबर तैयार हो गया. उसने आसफ खां नामक सरदार को गोंडवाना की गढ़मंडल पर चढ़ाई करने की सलाह दी. रानी दुर्गावती एक वीरांगना के रूप में :  रानी दुर्गावती ने अपने पहले ही युद्ध में भारत वर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था | शेरशाह की मौत के बाद सुरत खान ने उसका कार्यभार सम्भाला जो उस समय मालवा गणराज्य पर शाशन कर रहा था | सुरत खान के बाद उसके पुत्र बाजबहादुर ने कमान अपने हाथ में ली जो रानी रूपमती से प्रेम के लिए प्रसिद्ध हुआ था | सिंहासन पर बैठते ही बाजबहादुर को एक महिला शाषक को हराना बहुत आसान लग रहा था इसलिए उसने रानी दुर्गावती के गोंड साम्राज्य पर धावा बोल दिया | बाज बहादुर की रानी दुर्गावती को कमजोर समझने की भूल के कारण उसे भारी हार का सामना करना पड़ा और उसके कई सैनिक घायल हो गये थे | बाजबहादुर के खिलाफ इस जंग में जीत के कारण अडोस पडोस के राज्यों में रानी दुर्गावती का डंका बज गया था | अब रानी दुर्गावती के राज्य को पाने की हर कोई कामना करने लगा था जिसमे से एक मुगल सूबेदार अब्दुल माजिद खान भी था | ख्वाजा अब्दुल मजिद आसफ खान कारा मणिकपुर का शाषक था जो रानी का नजदीकी साम्राज्य था | जब उसने रानी के खजाने के बारे में सुना तो उसने आक्रमण करने का विचार बनाया | अकबर और दुर्गावती :         तथाकथित महान् मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास 'नरई नाले' के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।          इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।          रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।)


 *गोंडवाना शासनकाल की वीरांगना महारानी दुर्गावती जी के 456वीं बलिदान दिवस पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि एवं शत-शत नमन
                                                   * *🙏सबैतुन जीवाताल सेवा जोहार🙏* *
                                                📝संजू वाडीवा, भोपाल, म.प्र.9893323746🙏*

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