**आदिवासी कौन है? क्या है? इनका धर्म क्या है?*
👉बहुत से मित्र हमसे सवाल करते हैं कि आदिवासी कौन है? जब **आदिवासी हिंदू नहीं है न* मुसलमान है न बौद्ध है न सिख है न ईसाई है तो आखिर ये आदिवासी है कौन?
**चलिए जानते हैं विस्तार से,* **कृपया इस पोस्ट को पूरा पढें*
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👉 **आदिवासी कौन है-आदिवासी* *कोई जाति या कोई* *धर्म नहीं है*।
आदिवासी उन जातियों का समूह है जो भारत में अनादि काल से निवास कर रहे हैं, जैसे - मुंडा, संथाल, गरासिया, भील, भिलाला, गोंड, हल्बा, कंवर, कोकणी, अंध, ठाकर, पारधी, प्रधान, भूमिया, महादेव कोली, इत्यादि आदिम जाति के **समूह को "आदिवासी" कहा जाता है।*
👉 **आदिवासी क्या है-* **आदिवासी शब्द आदि + वासी दो* शब्दो का बना है जिसका अर्थ अनादि काल से भौगोलिक स्थान पे वास करने वाला व्यक्ति, समूदाय, मूलवासी/आदिवासी ऐसा होता है।
वास्तव में देखा जाए तो आदिवासी कोयतूर जन है जिन्हें बाहरी दुनिया के लोगों ने मतलब विदेशी लोगों ने इन कोयतूर जनों को आदिवासी नाम दिया। कोयतूर जन कोयामूरी द्वीप में रहने वाले लोगों को कहा गया है।
**आज आदिवासीयों के कई नाम* है जो लोगो नें केवल अपने राजनैतिक फायदों के लिये दिये है, जैसे की वनवासी, वनबंघु, जंगली, **मूलनिवासी, गिरीजन, बर्बर,एबोरिजनल, जनजाति है।*
भारत की जनसंख्या का 8.6% जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है । महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन कह कर पुकारा है।
**आदिवासीयों का संविधानिक नाम- "अनुसुचित जनजाति* (Schedule Tribe-ST )" है।
आज हम आदिवासी का प्रतिबिंबित दृश्यचोर, लूटेरा, गंवार, अनपढ़, अधनंगा मनुष्य की तरह लेते है। क्योंकि TV मिडीया चैनलों और फिल्मों मे हमें ऐसे ही जान बुझकर दर्शाया जाता है।
आज कुछ लोग अपने आदिवासी होने की पहचान छुपाते हैं और वो "कुछ" लोग शहर मे पढाई एवं नौकरी कर रहे व्यक्ति हैं - क्योकि उनकी मानसिकता में आदिवासी चोर, लूंटेरा, गंवार, अनपढ़, अधनंगा, अँधश्रद्दा में माननें वाला इंसान होता है।
सही मे आदिवासी "कुदरती इंसान" है जिसका महत्व यु एन ओ (UNO) ने दिया है. क्योंकि आदिवासी "प्रकृति रक्षक" और L.R.R. 1972 की P.No. 419 में आदिवासीयो का उल्लेख "नेचुरल कम्युनिटी" के नाम से किया गया है. हमें गर्व होना चाहिये की हम एक आदिवासी हैं।
👉प्रचीन विश्लेषण- अब बात करते हैं कि बहुत से ऐसे अंधभक्त आदिवासी लोग हैं जो पूछते है कि जब आदिवासी हिंदू नहीं है तो और क्या है? इसका धर्म क्या है?
वास्तव में देखा जाए तो यही एक वास्तविकता है कि भारत के मूलनिवासियों का धर्म कुछ नहीं बल्कि प्रकृति पूजा है, प्रकृति पूजा स्वंय में एक धर्म है। यह सच है कि भारतीय संविधान में इसे धर्म की परिभाषा उच्च वर्गों ने नहीं दी है किन्तु अगर हम इतिहास की गहराई में जाएँ तो हमें ज्ञात होगा कि महामानव गौतम बुद्ध जी ने यह प्राकृति धर्म को ही मानवतावादी धर्म माना है और ब्राह्मणवादी धर्म से विरत रहने को कहा है। यही वह धर्म है जो आदिवासियों का धर्म मानव धर्म होना चाहिए जो पाखंड, अवतारवाद, मूर्ति पूजा, देवतावाद, पुनर्जन्म, भाग्यवाद से रहित मानवतावाद से रहित है वे धर्म हो ही नहीं सकते हैं। बुद्ध का धम्म ही एक ऐसा मार्ग है जो समता, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित है। गोंडी धर्म और आदि धर्म मानवतावादी धर्म के ही भिन्न भिन्न अंग है या स्वरूप है इसलिए मानवतावादी धर्म ही आदिवासियों का मूल धर्म है। आदिवासियों का धर्म न हिंदू है और न ही कोई और ईश्वरवादी धर्म।
आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी कभी इस धरती के मालिक थे। उनके अपने साम्राज्य थे, उनकी सभ्यता और संस्कृति महानत्म ऊँचाइयों को छू रही थी और दुनिया की सभ्यताओ में उनका स्थान सर्वोच्च था। लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व आर्य नाम के ही बाहरी बर्बर जाति ने कहर ढाया उनके स्थान गाँव, शहर, किले ध्वस्त कर दिए। इनकी सभ्यता का केन्द्र मोहनजोदड़ो हड़प्पा से लेकर मध्य भारत और पूर्व में विहार तक फैला हुआ था। मध्य भारत की नाग सभ्यता आदिवासी सभ्यता ही है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की पश्चिमी भाग की द्रविड़ सभ्यता ही आदिवासी सभ्यता है।
विदेशी आर्य हमलावरों ने इस महाद्वीप मे इस महाद्वीप के मूलवासियों पर मध्य एशिया की और से आकर हमला किया इनसे राजनीतिक सत्ता छीन ली और जब शासक बन गये तो उनकी सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक आर्थिक जीवन सारा अस्त व्यस्त कर दिया।
आर्यो ने सैकड़ों किले हजारों नगर और लाखों गाँव जलाकर ढेर कर दिए। उनका इरादा था कि भारतवर्ष के मूलनिवासी आदिवासियों की नश्ल को ही मिटा दिया जाय और निष्कंटक होकर भारत पर आधिपत्य जमा ले उन्होंने आदिवासियों का कत्लेआम आरम्भ कर दिया। मृत्यु के भय से आदिवासी अपने सभ्यता केन्द्रों से भागने लगे। वे भागकर वन,
पर्वत, कन्दराओं, पहाड़ों रेगिस्तानों और बीहड़ पठारों में चले गए। पूर्व में असम, नागालैण्ड, मिजोरम, बोडोलैण्ड और झारखण्ड में रहने वाले निजी, नागा बोडों लोग सब आदिवासी हैं। पश्चिम में भीलवाड़ा और थार क्षेत्र में भील थारु सब आदिवासी हैं। मध्य भारत में रहने वाले गोंड, प्रधान पारधी है, और दक्षिण भारत में रहने वाले गोंड खोंड द्रविड़ जनजाति के लोग हैं। मध्य-प्रदेश की कुल जनसंख्या की 40 प्रतिशत आबादी इन्हीं आदिवासियों की है। उत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों की घाटियों में रहने वाले तथा भूटानी, नेपाली सबके सब आदिवासियों के ही वंशज हैं।
आर्यो में तीन वर्ण ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य भारत में आने से पूर्व ही बन चुके थे। भारत में आने के बाद इस वर्ण-व्यवस्था में चौथे वर्ण शूद्र को जोड़ा और जो पराजित आदिवासी पकड़कर गुलाम बना लिए गए उन्हें शूद्र वर्ण में डाल दिया। कालान्तर में जो आदिवासी सैनिक वर्ग के थे और आर्यो से लड़े थे इन्हें शूद्रों से भी घृणित स्थान देकर बहिष्कृत करार
दे दिया। अनार्य ही शूद्र समाज में शूद्र और अतिशूद्र (अछूत) भागों में बड़े दयनीय जीवन जी रहे हैं। धीरे-धीरे आर्यो ने अनेक धार्मिक और सामाजिक व्यवस्थायें कायम की इनमें इन शूद्रो को भी घसीट ले गए। छुआछूत ऊँच-नीच की व्यवस्थाएँ इन्ही आर्यो की देन है।
स्मरण रखना होगा कि इन आर्यो ने जो व्यवस्थाएँ कायम की उनमें वे ही आदिवासी घसीटे जा सके जिन्हें उन्होंने बन्दी बनाया और समाज में सम्मिलित करके अपना सेवक बना लिया। जो आदिवासी राजे-महाराजे इन आर्यों से लड़ें और इनका प्रतिरोध किया वे जब पराजित हुए तो बड़ी संख्या में सैनिक आदिवासी वन; पर्वत, कन्दरा, घाटी, जंगल,
रेगिस्तान जेसे सुरक्षित और निर्जन स्थानों को पलायन कर गए। इन आदिवासियों ने आर्यो की वर्ण-व्यवस्था को कभी स्वीकार नहीं किया और गर्व के साथ अपने पूर्वजों की दी हुई परम्पराओं को ही मानते रहे और आज भी मान रहे हैं। इन आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति, उठना-बैठना, बोलना-चलना, आचार-विचार संस्कार और त्यौहार सब आर्यो से भिन्न और उनके अपने हैं।
इन आदिवासियों ने पलायन करने से पूर्व आर्यों से जगह जगह घोर संग्राम किये इनके युद्धों के वर्णन आर्यों के वेद शास्त्र, पुराण ग्रंथों से मिलते हैं। आर्य ग्रंथों में इनको निशाचर, राक्षस, पिशाच, दैत्य, दानव, वानर, जामवंत, अनार्य, असुर आदि अनेक नामों से पुकारा गया है। इनके विनाश की प्रार्थनायें आर्यों ने की है वे ॠगवेद में पायी जाती है। ॠगवेद में इनके आर्यों के साथ हुए युद्ध के अनेकों वर्णन है। पुराणों में जिन सुर और असुर अथवा देव और असुर संघर्षों का उल्लेख है इसका प्रमाण है कि आर्यों और आदिवासियों के बीच घोर युद्ध होते रहे हैं।
*भारत के आदिवासी हिन्दुओं के रक्त बन्धु नही हैं, वे आर्यो से भिन्न अहिन्दु हैं यह बात हिन्दू शास्त्रों से भी सिद्ध है। वैदिक साहित्य में हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं है। हिन्दू शब्द तो बहुतवाद की देन है। बाहरी देश के लोगों ने यहां के हिन्दू उन लोगों के लिए प्रयोग किया था जो सिन्ध देश के रहने वाले थे। किन्तु यहां के आर्य समाज ने यहां के मूलवासियों को न अपना माना और न उनका सम्मान किया इतना ही नहीं इन आर्य वंशजों ने अपने को तो वर्ण-व्यवस्था से बाहर के इन **आदिवासियों को उन्होंने* विजातीय माना। इस प्रथकतावादी प्रवृत्ति के कारण आर्य हिन्दू लोग छुआछूत की प्रथा को धर्म का अंग मानते थे।
अनार्यो को आर्यो ने अपने चार वर्ण का अंग बताकर चौथा वर्ण शूद्र के साथ जो अछूत और आदिवासी है वे भी हिन्दू नहीं है।
**हिन्दू संस्कार और आदिवासी* संस्कार सब एक दूसरे से भिन्न हैं आर्य ईश्वरवादी है जबकि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं। आदिवासी शिव (शंभूशेक) उपासक और नाग संस्कृति को मानते हैं। इनके परिवार आज भी मातृ सत्तात्मक है जबकि आर्य पितृ सत्तात्मक परम्परा के हैं।
आदिवासियों में राम, कृष्ण दस अवतारों की कल्पना भी नहीं है वे आत्मा और पुनर्जन्म भी नहीं मानते हैं किन्तु हिन्दू मिशनरियों ने उनके इलाकों में प्रवेश कर उनके बीच प्रशिक्षण शिबीर लगाकर उन्हें हिन्दू संस्कृति में ढालने का प्रयास किया है। **आदिवासी इलाकों में ईसाई* **मिशनरियों ने भी डेरे* जमाए हैं किन्तु आज तक ये आदिवासी कहीं भी हिन्दुओं के प्रभाव में नहीं आए हैं जबकि ईसाइयों का पूर्वी क्षेत्र में कुछ प्रभाव पड़ा है।
**आदिवासी अधिकांशतः प्रकृति* की पैदावार पर ही आश्रित रहते है उनके पेश ब्राह्यण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र की भांति सामाजिक नही है। भोजन के लिए वे प्रकृतिक कंद मूल फल और जंगली जानवरों के मांस पर निर्भर रहते हैं (लेकिन अब नहीं)
उनका निवास स्थान और प्रसाधन सब प्रकृतिक वस्तुओं का होता है। उनके अस्त्र शस्त्र हिंदूओ से भिन्न होते हैं। उनकी भाषा और बोली हिंदूओ से भिन्न है। उनका आवास हिंदूओ से भिन्न है। भोजन, वस्त्र और रहन सहन, आचार विचार और संस्कार तथा सभ्यता, संस्कृति और उद्भभव सबमें हिंदूओ से सर्वथा भिन्न है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले ये आदिवासी रक्त वंश और जाति के आधार पर भी हिंदूओ से भिन्न है। वे द्रविड़ परंपरा के लोग हैं जिनके शरीर की बनावट और रंग रूप आर्य हिंदूओ से भिन्न है।.............. और भी बहुत सी चीजें हैं जो हिंदूओ से सर्वथा भिन्न है। इस प्रकार भारत के आदिवासी हिंदूओ से सर्वथा एक अलग वंश परंपरा और भिन्न राष्ट्रीयता के लोग हैं।
👉 **बताने के लिए तो बहुत है* मेरे दोस्त लेकिन इतना ही काफी है। नहीं तो आप लोग पढ़ नहीं पाओगे और बोर हो जाओगे।
👉 **एक नजर इस बात पर- आदिवासी का उल्लेख चारों वेद* पुराण, रामायण, महाभारत, बाइबल, कुरान में भी है अत: ये दस्तावेजी साबित भी हो गया है की आदिवासी A/C Ante Christ (इसु ख्रिस्त) पहले का Nonjudicial "कुदरती समूदाय" है।
**आज भारत में तकरिंबन 14-15 करोंड आदिवासी हैं, जो* अलग-अलग भौगोलिक स्थान में अपनी अलग-अलग रिती रिवाज, परम्परा, सामाजिक व्यवस्था, भाषा बोली, संस्कृति के साथ जी रहे हैं।
**आदिवासी धर्म पूर्वी हैं*
आदिवासी ए/सी (Ante Christ) है!
**आदिवासियो का इतिहास में* **अति महत्वपूर्ण भाग रहा है,और*
आदिवासीयों की गणना एक "कुदरती" "सच्चे" "व्यवहारिक" और "लड़ायक" कौम में होती है।
👉 **हमें गर्व है की हम एक* **आदिवासी हैं, लेकिन कुछ लोग*
शर्माते हैं, खुद को आदिवासी कहनें से, और शर्मानें वालें ज्यादातर लोग वो लोग हैं जो आदिवासी समाज के **नाम पर आरक्षण का फायदा* लेकर शहरों में सरकारी पदो पें फर्ज बजा रहे हैं और जो आदिवासी युवा पढाई के लियें शहरो में गये हैं, वो खुद को “आदिवासी” कहनें मे शर्माते हैं क्योकि वो दूसरी संस्कृति / रिती-रिवाज को
“ **आदिवासी सभ्यता” सें बड़ा* **मानते है और आदिवासी को* अधनंगा, चोर-लूटेरा, जंगली, अनपढ़, गंवार होने की कल्पना करते है, जब पढ़ाई, नौकरी, चुनाव या कहीं पर भी फार्म भरने के लिए सर्टिफिकेट बनाते हैं, तो उस समय कुछ याद नही आता है उस समय तो केवल अपना फायदा लेने लिए काम निकालना था, अपना काम होने के बाद समाज जाए भाड़ में ऐसा बोलकर निकल जाता है, जरूरत पड़ने पर फिर से समाज के आसपास घूमता/मंडराता है, औऱ सबसे ज्यादा ऐसे लोग ही समाज को बर्बाद किए हैं।
जबतक हमारें लोग अपनी आदिवासी सस्कृति, व्यवहार और सभ्यता को नहीं जानेंगे तबतक वो खुद को आदिवासी कहनें सें शर्मायेंगे।
**आदिवासी जीवन दर्शन,** **आदिवासी संस्कृति, सभ्यता,* **सामाजिक व्यवस्था और व्यवहार* **सभी धर्मो सें बढ़कर है* पहले खुद को समझो बाद में अपनें आदिवासी होने पे गर्व करो, जबतक आप आदिवासी क्या है यें समझोगें ही नही तबतक आप अपनें आप पें “गर्व” नही कर सकोगे, क्योंकि आपकी नजर में आदिवासी का अर्थ जैसे फिल्मों में दिखाते हैं वैसा हिप-हिप-हुर्रे, झींगालाला हो हो, झींगालाला हो हो, अधनंगे, चोर-लूटेरे, जंगली, गंवार, अनपढ़, बैल को खाने वाला, इँसान को खाने वाला ही दिखता है।
👉 **मैं खुद को आदिवासी होने* **पर गर्व करता हूँ*" क्योकि…..
1. **हम इस देश के मालिक हैं* और सदियों से इस देश में निवास करते आ रहे हैं, आदिवासी का अर्थ ही किसी भौगोलिक स्थान पे अनादि काल से निवास करना है और मैं वो आदिवासी हूँ जो मेरे पूर्वज भारत में सदियों से रह रहे हैं ,भारत देश के हम मालिक हैं.
2. **UNO नें किसी धर्म या जाति* **विशेष को छोड़ के सिर्फ* **आदिवासीयों के विकास एवं रक्षा कें लियें 9 अगस्त (9* Auguest) “विश्व *आदिवासी दिवस* (World* Aboriginal Day)” जाहिर किया है।
3. **आदिवासी समाज में स्त्री* (महिला) की इज्जत की जाती है, और उसें पुरुष कें बराबर का हक दिया जाता है।
4. **आदिवासी व्यवहार प्रेम का* व्यवहार है, यहाँ किसी कें खानें-पीनें, दूध आदि कुदरती संपत्ति के पैसे (Charge) नही देने होते है।
5. **क्षत्रिय अगर खुद के राज-* **रज़वाडो पे गर्व करतें हैं तो* इसकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ आदिवासी है, अगर आदिवासी जंगलों में मुगल एवं दूसरें दूश्मनो के हमलें का जवाब नही देता तो आज क्षत्रियो का नामोनिशान नही होता, और आज भी गुजरात और राजस्थान के राष्ट्रचिन्ह में एक और क्षत्रिय तो दूसरी ओर भील है।
महाराष्ट्र में भी क्षत्रिय राजा का स्थान आदिवासियों की बलिदान की बदौलत है।
6. **आदिवासी ने आजतक किसी* की गुलामी नहीं की और वो जितना सहनशील होता है उतना ही खुंखाऱ होता है।
7. **आदिवासी रिती-रिवाज एक* दूसरें की सहायता के लियें बने हुए है और कभी किसी **आदिवासी कें माता-पिता किसी वृद्दाश्रम में नही दिखेंगे क्योकि आदिवासीयों के लियें माता-पिता सर्जनहार है। मुझे गर्व है की में **आदिवासी हूँ।*
8. **एकलव्य जैसा वीर स्वयंगुरु* *आदिवासी है।*
9. **हमें गर्व है कि- रानी दुर्गावती,* *शंकर शाह एवं उनके* **पुत्र कुवर रघुनाथ, बिरसा* **मुंडा, राघोजी भांगरे*,
**तंट्या भील, गुंडाधुर, जैसे कई* ऐसे क्रांतिकारियो पर।
**हर शिक्षित आदिवासी जागो औऱ* हमारे समाज को बचाने एवं बढ़ाने में अपना योगदान दो। जिस समाज ने आपको बढ़ाया हैं, उसका कर्ज अदा करो।
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जय सेवा!
जय आदिवासी!
जय गोंडवाना!
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