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betul jile ki kuch atihashic dharohar

 ग्राम शेरगढ़ में 150 मीटर ऊंची पहाड़ी पर प्राचीन किला बना हुआ है। देखरेख के अभाव में किला खंडहर हो चुका है। हालांकि अभी भी किला मजबूत दीवारों पर खड़ा है। इसके बाद भी प्राचीन किले का अस्तित्व बचाने को लेकर कोई कदम नहीं उठाए जा रहे। ऐसे में अब ग्रामीणों ने इस किले के जिर्णाद्धार की मांग उठाई है।


किले के पास स्थित वर्धा नदी पर जल संसाधन विभाग डेम का निर्माण कर रहा है। ग्रामीणों का कहना है डेम के साथ किले का भी जिर्णाद्धार हो जाएगा तो यह पर्यटन स्थल बन जाएगा। ग्रामीणों ने बताया खसरा नंबर 485, 486 और 487 शासकीय भूमि 8.251 हेक्टेयर किले के नाम दर्ज है। किले के पिछले हिस्से में पहाड़ी के नीचे कुछ दिनों पहले डेम निर्माण करने वाले ठेकेदार ने मशीन से खुदाई कर रास्ता बनाया है। ग्रामीणों को डर है ठेकेदार पहाड़ी को नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में ग्रामीणों ने पहाड़ी और किले को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो, इसके लिए जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को भी अवगत कराया है। जल संसाधान उपसंभाग के उपयंत्री सी. पाठे कर ने बताया ठेकेदार ने पहाड़ी से दूर मार्ग का निर्माण किया है। पहाड़ी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा।

वर्तमान में यह है किले की स्थिति: किले का निर्माण किस सदी में हुआ है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। वर्धा नदी के किनारे स्थित इस किले को शेरगढ़ के किले के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में किले के दो दरवाजे सही हालत में हैं। पूर्व दिशा में किले का मुख्य द्वार और पश्चिम दिशा में बाराद्वारी है जो जीर्ण-शीर्ण हो गई है। पं. विश्वक सेन देशमुख ने बताया किले के अंदर शतरंज का चबूतरा बना हुआ था जो अब नहीं है। उत्तर दिशा की तटबंदी भी गिर चुकी है। किले का निर्माण पत्थरों, चूना और ईट से हुआ है। किले के अंदर एक बावड़ी दिखाई देती है जो पत्थरों से भर दी गई है।

बुजुर्गों के अनुसार किले का महत्व: बुजुर्ग नान्हेलाल बुढ्डे (63) ने बताया किले का निर्माण आदिवासी राजा ने किया था। जिसका क्या नाम था, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है। किले पर शेर खा ने आक्रमण कर अपने कब्जे में लिया था। किले के आसपास पहले घना जंगल होता था। किले के पास प्राचीन हनुमान जी की प्रतिमा भी है। 65 वर्षीय लंकी बाई के अनुसार इस किले में पहले विशाल सुरंग थी।

मुलताई। शेरगढ़ का किला देखरेख के अभाव में हो गया जीर्ण-शीर्ण।

बैतूल जिले में खेड़ला किला, भंवरगढ़, सांवलीगढ़, शेरगढ़ और असीरगढ़ किला शामिल हैं। पांच सौ साल से ज्यादा पुराने इन आदिवासी किलों में गोंडराज के इतिहास की झलक मिलती है।

खेड़ला किले का इतिहास

जिला मुख्यालय से सात किमी दूर बैतूल-आमला मार्ग से सटा है खेड़ला किला। इस किले को राजा ईल द्वारा बनाया गया था। खेड़ला किले में 1365 में राजा हरदेव, 1398 में नरसिंह राय थे। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद यह राज्य राधोजी भोंसले के अधिकार में चला गया। बुरहान शाह और उसके भाई के आपस में झगड़े का फायदा भोंसले ने उठाया और खेड़ला पर कब्जा कर लिया. उसने अपनी राजधानी खेड़ला को बनाया. सन् 1818 ई. में सीताबर्डी की लड़ाई में अंग्रेजों ने भोंसले से खेड़ला छीन लिया। जेएच काॅलेज के पर्यटन विषय के प्राेफेसर दिनेश शास्त्री, आारजी राने कहते हैं कि बैतूल जिले में किले ताे बहुत हैं, लेकिन इन धराेहर काे सहजने की जरूरत है। आदिवासी संगठन से जुड़े अनुराग माेदी कहते हैं कि पुरातत्व विभाग है, लेेकिन उन्हाेंने कभी भी इन किलाें काे रेखांकित करने की जरूरत महसूस नहीं की।

बैतूल। बैतूल का आदिवासी खेड़ला किला।

असीरगढ़ किला : बैतूल के उत्तरपूर्व में लगभग 64 किमी दूर और शाहपुर तहसील से करीब 30 किमी दूर रामपुर के सुरक्षित वनक्षेत्र से होकर यहां पहुंचा जा सकता है। यह समुद्रतल से करीब 686 मीटर ऊंचाई पर है। यह दुर्ग आदिवासी अधिपत्य में था। इसका संबंध देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के प्रसिद्ध गोंड शासकों से बताया जाता है। यह किला आदिवासियों की कहानियां समेटे हुए है। 1857 में अंग्रेजों से बगावत करने वाला भभूत सिंह यहीं का रहने वाला था। जंगल की लड़ाई में शहीद होने वाला भभूत सिंह मध्यप्रदेश का पहला आदिवासी है, जिसे (1861 में) जबलपुर जेल में फांसी दे दी गई थी। इसके बाद ही 1862 में बोरी क्षेत्र के जंगलों पर कब्जा कर लिया गया। असीरगढ़ किला अब जीर्ण-शीर्ण हो गया है। दीवाराें में छेद हाे गए हैं। वहीं कुछ ढह गई हैं। इसके अलावा यहां पानी की बावली और मंदिर है। मंदिर की दीवारें भी कमजाेर हाे चुकी हैं।

शाहपुर। पावरझंडा के पास है भंवरगढ़ किला।

भंवरगढ़ किला : शाहपुर से करीब 14 किमी दूर पश्चिम में पावरझंडा के पास भंवरगढ़ किला है। यह किला अादिवासी राजाअाें की निशानी में से एक है। पत्थराें और पीली मिट्टी की दीवाराें से बना यह किला समुद्र तल करीब 800 मीटर ऊंचाई पर है। यह मुगल काल से पुराना है। इस किले में एक मंदिर और तालाब, बावली है। यहां पर पानी की कमी नहीं हाेती है। दुश्मनों से रक्षा के लिए आदिवासी किले को पहाड़ पर बनाते थे। हमलावर अासानी से किले तक नहीं पहुंच पाते थे। यहां स्थित मंिदर में त्याैहाराें अाैर पर्व पर लोग अाते-जाते हैं। बारिश नहीं हाेने पर लाेग यहां पर मन्नत मांगते हैं। पहावाड़ी के मुकेश मालवीय ने इस किले को लेकर पुरातत्व विभाग को अवगत कराया है। शाहपुर कॉलेज के छात्रों ने प्रोफेसर महेंद्र गिरी के नेतृत्व मंे यहां हाल में साफ-सफाई की थी।

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