शंभू नरका कोइतूर समाज का एक महत्त्वपूर्ण और महान पंडुम : डॉ सूरज धुर्वे
कोइतूर परंपरा में सभी पाबुन पंडुम किसी न किसी उद्देश्य के प्रति लोगों को जागरूक और ज्ञानवान बनाने के लिए मनाए जाते है। जो त्योहार परेवा से पूर्णिमा तक मनाए जाते हैं उन्हे पाबुन और जो परेवा से अमावस्या तक मनाए जाते हैं उन्हे पंडुम कहते हैं।
समस्त कोयावंशियों (कोइतूरों) में माघ पूर्णिमा के तेरहवें दिन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पंडुम मनाया जाता है जिसे शंभू शेक नरका कहते हैं। शंभू शेक नरका को शंभू के जगाने की रात या शंभू जागरण की रात्रि के रूप में भी जाना जाता है। महाराष्ट्र में इस त्योहार को “संभू जगेली नरका” के नाम से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस त्योहार को महा शिवरात्रि कहते हैं और इसे हिन्दू लोग भी बड़े धूम से मानते हैं।
अब प्रश्न आता है है की यह शंभू शेक कौन थे ? ये शंभू शेक नरका त्योहार क्यूँ मनाया जाता है?
कोयामुरी द्वीप (भारत) में जब से आर्य आए तब से उन्होने आज तक के समय को चार भागों में बांटा है जैसे सबसे पहला काल खंड सतयुग, दूसरा काल खंड त्रेता, तीसरा काल खंड द्वापर और चौथा आधुनिक काल (कलयुग)। प्रत्येक काल खंड में इस धारा पर शासन करने और यहाँ की धन सम्पदा पर अधिकार करने के लिए उन्होने यहाँ के ही किसी कोइतूर वीर को अपने भगवान के रूप में चुना और उसी के पीछे पूरी कोइतूर समाज और उनकी व्यवस्था को नियंत्रित और संचालित किया। जैसे सतयुग में शंकर, त्रेता में राम और द्वापर में कृष्ण और अब कलयुग में आप स्वयं समझ सकते हैं। क्या कभी आपने ध्यान दिया की शंकर, राम और कृष्ण सभी साँवले या काले क्यूँ थे? क्यूंकी ये सभी यहीं के कोइतूर मूलनिवासी राजा थे जो आर्यों द्वारा समय समय पर भगवान के रूप में प्रस्तुत किए गए।
भारत में आर्यों के ठीक पहले, ऐसे ही एक राजा शंभू शेक थे जो इस पाँच खंड धरती के पोया (राजा) थे। उनके पिता का नाम कुलीतरा था जो कोया मुरी दीप के गंड प्रमुख थे और उनका शासन का सत्ता केंद्र सतपुड़ा (सत्ता का पुड़ा यानि सत्ता का केंद्र) पर्वत शृंखला पर स्थित पेंकमेढ़ी (आधुनिक पचमढ़ी ) था। राजा कुलीतरा को एक अलौकिक संतान हुई जिसका नाम कोसोडूम रखा गया था। कोसोडूम ने अपनी विद्वता, शक्ति, योगबल और तपोबल से इस पंच खंड धरती का शासन संभाला और इस पंच खंड धरती का महाधिपति बना । कुलीतरा की मृत्यु के उपरांत इस धरती के सभी गंडजीवों ने कोसोडूम को अपना राजा चुना और उन्हे “शंभू शेक” की उपाधि ने नवाजा। शंभू शेक ने मूँद शूल सर्री (त्रिशूल मार्ग ) का सिद्धान्त दिया था जिसका अनुपालन बाद के सभी शंभू शेकों ने किया। आज भी उसी त्रिशूल मार्ग का प्रतीक त्रिशूल कोइतूर समाज के साथ साथ हिंदुओं में पूजा जाता है।
कोया पुनेमी व्यवस्था में इसी प्रकार से कुल 88 शंभू शेक हुए जिन्होंने कोया पुनेमी व्यवस्था का संचालन किया और हजारों वर्षों तक अपना शासन बनाए रखा। शंभू शेक को कोइतूर लोग शंभू मादव भी कहते हैं जो इस पंच खंड धरती का मालिक होता था। आज इसी महान शंभू शेक पोया (राजा) को हिन्दू लोग भी महादेव के नाम से पूजते है। आज तक जितने भी शंभू शेक हुए हैं वो अपनी पत्नियों के साथ जोड़ियों के रूप में जाने जाते हैं जैसे शंभू मूला प्रथम जोड़ी, शंभू गवरा मध्य जोड़ी और शंभू गिरजा अंतिम जोड़ी मानी जाती है। अंतिम जोड़ी को शंभू पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। यह जोड़ी सतयुग के प्रारम्भ में इस धरती पर थी जब आर्यों का आगमन इस धरती पर हुआ था।
इन शंभू पोया के रहते किसी भी बाहरी व्यक्ति का इस धरती पर आना संभव नहीं था अगर किसी को भी इस धरती पर प्रवेश करना होता था, या बसना होता था या अपने वंश का विस्तार करना होता था या मृत्यु के बाद दफनाना होता था तो यह सब शंभू पोया के अनुमति के बाद ही संभव हो पाता था। जब आर्यों की छोटी छोटी सैनिक टुकड़ियाँ इस कोयामुरी धरती पर प्रवेश करने लगी तो शंभू के आदेश से उन्हे खदेड़ कर वापस कर दिया जाता था या मार दिया जाता था। इससे आर्य परेशान हो गए और शंभू को वश में करने के लिए और उनकी राज सत्ता पर अधिकार करने के लिए कूट नीतिक और षणयंत्र का सहारा लेने लगे।
उन्हे अपने वश में करने के लिए उन्होने आर्य राजा दक्ष की कन्या पार्वती को उनके पास भेजा लेकिन पार्वती स्वयं उनके प्रभाव में आकर उन्ही की भक्तिन बन गयी और आर्यों का यह दांव उल्टा पड गया। जब साम दाम दंड भेद अपनाने के बाद भी आर्यों ने शंभू शेक को जीत नहीं पाया तब उन्हे और उनकी सेना को धोके से जहर देकर मरने का षणयंत्र रचा। लगातार युद्ध में हारते हुए निराश आर्यों ने सुलह का फैसला किया और एक सुलह प्रीतिभोज का आयोजन किया जिसमें शंभू और उनकी सेना सहित प्रजा को भी निमंत्रण भेजा गया।
तय संधि के अनुसार माघ की पूर्णिमा की दूधिया चाँदनी रात में एक विशाल मैदान में शंभू शेक, कोया लिंगो, महान भूमकाओं, मुठवावों, अपनी सेना और प्रजा के साथ भोजन के लिए पहुंचे थे। आर्यों की तरफ से और शंभू की तरफ से शांति पूर्ण रहने और प्रकृति को नष्ट न करने की शर्त पर आर्यों से समझौता हुआ। और उसके बाद प्रीतिभोज के लिए सभी आसन पर बैठे। सभी को भोजन परोसा गया लेकिन शंभू को आर्यों द्वारा परोशे गए भोजन पर शक हुआ तो उन्होने अपने सभी साथियों को भोजन करने से रोक दिया और बोले पहले मैं भोजन करूंगा फिर मेरे सहयोगी भोजन खाएँगे।
यह कहकर शंभू ने खाना खाना शुरू किया लेकिन खाना खाते ही उनको उल्टियाँ होने लगीं और शरीर नीला पड़ने लगा और जल्दी ही वे बेहोश हो गए। पूरे कोइतूर सेना और सलाहकार परिषद में हंगामा मच गया । अपने शंभू को बेहोशी की हालात में देखकर पूरी कोया सेना आर्यों पर टूट पड़ी और उनही बहुत बुरी तरह से खदेड़ कर भगाया।
अपनी जान पर खेल कर शंभू शेक ने अपनी सेना, सलाहकार परिषद, सहयोगियों और प्रजा की जान बचाई थी और विषाख्त भोजन को खुद खाकर लोगों के सामने महान बन गए थे । शंभू की शारीरिक और मानसिक क्षमता के साथ साथ लोगों को उनकी आध्यात्मिक बल पर भी लोगों को पूरा भरोसा था और सबको पता था कि एक न एक दिन वे इस विष को पचाकर वापस होश में आ जाएंगे इसलिए सभी लोग उनके शरीर को साफ स्थान पर रख कर रोज दिन रात उन्हे जागृत करने का प्रयाश करते रहे।
पूर्णिमा के दिन शंभू को पुनः जीवन दान देने और होश में लाने के लिए कोइतूर भूमका और कोया लिंगो की सलाह पर सय मुठोली गोंगों का आयोजन किया गया। सय मुठोली गोंगों यानि पाँच मूठों (खूट ) या पाँच तत्वों की पूजा का आयोजन। कोइतूर व्यवस्था में पाँच तत्वों को फड़ापेन कहते हैं जिनसे जीवन का निर्माण होता है और शंभू शेक को नया जीवन देने के लिए पूर्णिमा के दिन लिंगो ने अपने पाँच मुठवा के साथ सय मुठोली गोंगों या फड़ा पेन गोंगों का आयोजन किया था और पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के दो दिन पहले तक यह गोंगों और जागरण कार्यक्रम चलता रहा। आज भी माघ पूर्णिमा को भारत के कोइतूर समाज में सय मुठोली गोंगों का आयोजन किया जाता है। अंततः पूर्णिमा के तेरहवें दिन शंभू शेक की आँख खुली और उन्हे पूर्ण रूप से होश आ गया । जैसे ही उन्हे होश आया पूरे राज्य में खुशी का माहौल छा गया लोग अपने शंभू शेक को जीवित देख कर उत्साहित हो गए और गाने बजाने और नाचने में मस्त हो गए।
तब से आज तक पूरे कोइतूर समाज के साथ साथ अन्य संस्कृतियों के लोग भी शंभू शेक नरका को हर्षोल्लास के साथ मानते हैं और सभी के सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना हेतु शंभू शेक का गोंगों (पूजा) करते हैं।
आज हमें फिर से ऐसे ही शंभू शेक की जरूरत है जो आज कोइतूर समाज में फैले हुए जहर को पीकर पूरी मानवता का मार्ग प्रशस्त करे और सभी को सुखद जीवन दें ! आप सभी को इस महान पंडुम (पर्व) पर बहुत बहुत बधाइयाँ शुभकामनयें और सेवा जोहार !
डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे”
अंतर्राष्ट्रीय कोया पुनेमी चिंतनकार और कोइतूर विचारक
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