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गोंडवाना की एक और विस्मृत धरोहर / KHEDLA KILAA

GARH KHEDLA KA ITIHAS

गोंडवाना की एक और विस्मृत धरोहर का पता चला । बेतुल शहर से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व दिशा में गोंडवाना के 52 महत्त्वपूर्ण गढ़ों में से एक गढ़ खेरला का भ्रमण करने का सुअवसर मिला ।यह क़िला रावणवाड़ी ऊर्फ खेडला ग्राम के पास स्थित है। खेरला (खेडला)सूबा बरार के अंदर आने वाला प्रमुख गढ़ था । आज इस क़िले की बदहाली और जर्जर अवस्था देख के आँखों में आँसू आ गए । कभी अपने वैभव और समृद्धि के लिए जाना जाने वाला क़िला अपनी दुर्दशा पर चीख़ चीख़ कर आँसू बहा रहा है । आज जब क़िले के भीतर प्रवेश किया तो सोचने लगा कि क्या कोई देश और प्रदेश अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को ऐसे ही नष्ट होने देता है ?



विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार टोलमी के अनुसार वर्तमान बैतूल ज़िला अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु था। इस बैतूल में 130 से 160 ईसवी तक कोण्डाली नामक गोंड राजा का राज्य था। गोंड राजा- महाराजाओं की कई पीढिय़ो ने कई सदियो तक खेरला के क़िले पर राज किया।



खेरला का क़िला किसने बनवाया ये ठीक ठीक ज्ञात नहीं है लेकिन इतिहासकारों ने एक गोंड राजा इल का वर्णन किया है जिसका शासन बेतुल से अमरवती तक फैला था। 15वीं शताब्दी में यह गढ़ा मंडला के गोंड राजा संग्राम शाह के अधीन रहा ऐसे अंग्रेज़ इतिहास कारों का मानना है । इस क़िले के बारे में अबुल फ़जल ने आइने अकबरी में लिखा है कि “यहाँ के सभी निवासी गोंड हैं”। आइने अकबरी में देवगढ़ सरकार के वर्णन में अबुल फ़ज़ल ने 57 महलों में 56 महलों के ज़मींदार गोंड बताए हैं और भी लिखा है कि खेरला मैदान में एक मज़बूत क़िला है…,इसके पूर्व में जाटवा नामक गोंड ज़मींदार रहता है जिसके पास 2000 घुड़सवार, 50000 पैदल सेना और 100 से ज़्यादा हाथी हैं । एक जगह पर अबुल फ़ज़ल लिखता है कि खेरला सरकार के 22 परगने जाटवा और कुछ अन्य ज़मींदारों के पास थे जिनसे मिलने वाला राजस्व सरकारी खातों में नहीं जमा होता है ।



प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो सुरेश मिश्रा के अनुसार जाटवा का शासन काल 1580 ईसवी से 1620 ईसवी तक रहा। जाटवा के बेटे दलशाह ने यहाँ 14 साल फिर कोकशाह ने 1634 ईसवी से लेकर 1640 ईसवी तक (मृत्यु तक) शासन किया । कोकशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा केशरीशाह 1640 ईसवी में देवगढ़ की गद्दी पर बैठा और खेरला का नियंत्रण 1660 ईसवी तक किया ।



मुगलो के लगातार आक्रमण से परेशान होकर खेरला (खेड़ला) राजवंश ने मुगलो के हमलो से बचने के लिए मुग़लों से समझौते कर लिए और उसके तहत खेरला क़िले का नाम बदल कर मेहमुदाबाद कर दिया गया.



गोरखशाह ने 1660 ईसवी में कोकशाह के उत्तराधिकारी के रूप में शपथ ली और उससे दो बेटों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर गोंडवाना के लगभग 100 वर्षों के शासन को मुग़लों के अधीन कर दिया । इसके बाद ये क़िला भोंसले रियासत के द्वारा नियंत्रित होता रहा और बाद में इसे अंग्रेज़ों के नियंत्रण में आ गया ।



खेरला पर राज करने वाले एक अन्य राजा जैतपाल का जिक्र पढऩे को मिलता है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके पास पारस पत्थर था जिसका उपयोग वह लोहे को सोना बनाने में करता था। इस राजा के कार्यकाल में टैक्स लगान न चुकाने वाले किसानो के लोहे से बने सभी उपयोगी सामान जैसे गैची, सब्बल, कुल्हाड़ी, फावड़ा तक कुर्क कर लेता था जिसे वह बाद में पारस पत्थर से सोना बना कर अपने खजाने में रखता था। अपार सोना होने के चक्कर में ही लोगो ने इस किले को आज खण्डहर का रूप दे दिया.



यहाँ की भौगोलिक स्थित और सतपुडा के पहाड़ों के बीच स्थिति इसे उत्तर और दक्षिण भारत दोनों से अलग करती है। यहाँ पर अपनी स्थित को सुरक्षित देख कर गोंडों ने मुग़लों को कर देना बंद कर दिया था

उत्तर की तरफ़ से विंध्याचल और सतपुडा से ये क़िला काफ़ी सुरक्षित रहा लेकिन दक्षिण के मैदानी भागों अमरवती और भंडारा की तरफ़ से मराठों ने गम्भीर आक्रमण किए और क़िले को क़ब्ज़े में ले लिया ।



यह क़िला एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है जिसके चारों ओर लगभग 500 मीटर के घेरे में समतल मैदान भी है । मैदान के बाद एक बाहरी दीवार भी थी दीवाल इतनी मोटी थी कि उस पर कम से कम चार आदमी एक साथ चल सकते थे। इस दीवाल का काफ़ी हिस्सा (पश्चिमी और पूर्वी दक्षिणी दिशा में )अब भी सुरक्षित है । इस दीवाल के बाहर चारों तरफ़ एक सुरक्षा लगभग 10-15 मीटर चौड़ी खाईं भी थी जिसमें पानी भरा रहता था । यह खाई लगभग 10 फ़ीट गहरी थी और आज भी सुरक्षा दीवर के बाहर पश्चिमी छोर पर इस खाईं की उपस्थिति देखी जा सकती है ।



क़िले में घुसने के तीन रास्ते है एक उत्तर की तरफ़ से दूसरा दक्षिण और तीसरा पूर्व की तरफ़ से । क़िला का पश्चिमी हिस्सा बिलकुल ढह गया है जबकि उत्तरी हिस्से में केवल एक मीनार और बुर्ज का कुछ हिस्सा दीवाल से लगा हुआ देखा जा सकता है ।पूर्वी हिस्से में क़िले की दीवाल अभी भी सुरक्षित है । क़िले की दक्षिणी दीवार अभी भी कभी हद तक सुरक्षित है और बेतुल की तरफ़ से आने पर वही पहाड़ी पर नज़र आती है ।

क़िले की चौड़ाई पूरब से पश्चिम में लगभग 100-110 मीटर ही होगी लेकिन क़िले की लम्बाई उत्तर से दक्षिण में लगभग 500-600 मीटर है। पूरे क़िला लम्बाई में तीन हिस्सों में बनता हुआ । सबसे उत्तरी छोर पर स्थित सबसे निचला हिस्सा है जिस पर प्रवेश द्वार और कुछ सैनिकों के रहने के आवास दिखाई देते हैं । यही पर हज़रत चाँद शाह अली की एक दरगाह भी है जिसे अंतिम गोंड राजा ने मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के बाद बनवाया होगा ।

क़िले का बीच का हिस्सा पहले हिस्से से थोड़ा ऊँचाई पर है यह महल के रूप में रहा होगा हो लेकिन आज यह पूरी तरह ज़मींदोज़ हो चुका है और एक समतल मैदान पर जंगल बना हुआ है । क़िले का तीसरा हिस्सा सबसे ऊँचाई पर है और यही काफ़ी सुरक्षित है लेकिन लोगों ने मूर्तियाँ और पूजा स्थल बनाकर अतिक्रमण कर रखा है। इस में में दो बावड़ी भी हैं जो खंडहर हो चुकी हैं ।स्थानीय ग्राम पंचायत ने एक सभागार भी बनवा रखा है और एक काली का मंदिर भी ।

इस क़िले से चारों तरफ़ ख़ूबसूरत हरे भरे मैदान सिखाई देते हैं और उत्तर पश्चिम में सतपूड़ा के सुंदर पहाड़ सुरक्षा घेरा बनते हैं । पूरे क़िले पर कहीं भी पुरातत्व विभाग की उपस्थिति नहीं नज़र आती और न ही कोई बोर्ड या सूचना पट्ट । हाँ आज भी कुछ गोंड परिवार और गोंड समाज के लोग वहाँ पर पेन ठाना बनाए हुए हैं जिसमें सल्ला गांगरा का प्रतीक और झंडा लगा रखे हैं । इस क़िले को आज भी सरकार की कृपादृष्टि की ज़रूरत है ।

गोंडवाना का यह क़िला छोटा भले लेकिन सामरिक दृष्टि से महत्तवपूर्ण है और भोपाल और नागपुर की गोंड रियासतों के बीच एक प्रमुख स्थान रखता है ।

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